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7, 8श्लोक

 मनुष्य मन, वाणी और शरीर से पाप करता है। यदि वह उन पापों का इसी जन्म में प्रायश्चित न कर ले, तो मरने के बाद उसे अवश्य ही भयंकर यातनापूर्ण नरकों में जाना पड़ता है। इसलिए बड़ी सावधानी और सजगता के साथ रोग एवं मृत्युके पहले ही शीघ्र-से-शीघ्र पापों की गुरुता और लघुता पर विचार करके उनका प्रायश्चित कर डालना चाहिए, जैसे मर्मज्ञ चिकित्सक रोगों का कारण और उनकी गुरुता-लघुता जानकर झटपट उनकी चिकित्सा कर डालता है।